सुहागिन या विधवा - 1 Kishanlal Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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सुहागिन या विधवा - 1

"थप। थप-------
दरवाजे पर पड़ने वाली दस्तको ने राधा की नींद में विघ्न डाला था।कौन हो सकता है इतनी रात को? यह सोचती हुई वह दरवाजे तक आयी थी।दरवाजा खोलने से पहले उसने पूछा था,"कौन है?"
"राघव।"
दरवाजे पर खड़े आगुन्तक ने अपना नाम बताया था।नाम सुनकर भी उसे याद नही आया कि आनेवाला कोंन है?फिर भी उसने दरवाजा खोल दिया। दरवाजे के बाहर उसे एक मानव आकृति खड़ी नज़र आई।अंधेेेरे की वजह से उसका चेहरा नज़र नही आ रहा था। इसलिय राधा ने एक बार फिर पूछा था।
"कौन हो?किससे मिलना है?"
"मै राघव हूँ।"अपना नाम फिर दोहराते हुए वह बोला,"तुम कौन हो जो मुझे नही पहचानती।"
अंधेरे में सामने खड़े आदमी ने अपना नाम दोहराया तो राधा हतप्रद रह गई।कंही वह सपना तो नही देख रही?एक क्षण में उसका अतीत उसकी आँखों के सामने साकार हो गया।।
राधा का जन्म ठाकुर परिवार में हुआ था।राधा के पिता किसान थे।सम्पन्न घर,,गांव का स्वच्छ खुला वातावरण।किसी तरह का अभाव चिंता नही।इसी वजह से राधा सोलह साल की उम्र में ही पूर्ण युवती नज़र आने लगी थी।उन दिनों लड़कियों की शादी कम उम्र में ही कर देने का रिवाज था।।
जवान होते ही राधा के पिता ने भी उसके लिए वर की तलाश शुरू कर दी थी।थोड़े से प्रयास के बाद ही रामदास को अपनी बेटी राधा के लिए योग वर मिल गया था।रामगढ़ के जमीदार सूरजमल का बड़ा बेटा फ़ौज में था।
अन्य जातियों में फ़ौज़ की नोकरी को अच्छा नहीं समझा जाता।फौजी पर हर समय मौत का साया मंडराता रहता है।न जाने कब लड़ाई छिड़ जाए और किस औरत का सुहाग उजड़ जाए।लेकिन राजपूतों में फ़ौज़ में नौकरी करना शान की बात समझी जाती है।राजपूत हमारे देश की लड़ाका और बहादुर कोम है।युद्ध लड़ना राजपूत अपना धर्म समझते है।युद्ध भूमि में दुश्मन से लोहा लेने वाले को वीर समझा जाता है।युद्ध के मैदान से पीठ दिखाकर भाग आने वाले को कायर समझा जाता है।राधा का राघव से रिश्ता होने पर सबने उसके भाग्य को सराहा था।
चट मांगनी पट ब्याह।राधा दुल्हन बनकर ससुराल आ गई।
सुहाग रात को राधा सुहाग कक्ष में फूलों की सेज पर लंबा घूघट निकालकर बैठी थी।राघव उसके पास आया तो वह छुईमुई सी सिकुड़ गई।राघव ने राधा का घूंघट उठाया,तो उसके मुंह से अनायास निकला था,"सूंदर अति सुंदर रूप की देवी
राघव ने अपने प्यार की पहली निशानी राधा के होंठो पर अंकित कर दी थी।राधा ने शरमाकर आंखे बंद कर ली।राधा के बदन से उठ रही खुशबू ने उसे मदहोश कर दिया।उसने उसे बांहो में भर लिया।धीरे धीरे रात सरकने लगी।
राघव हंसमुख स्वभाव का था।राधा पति से जल्दी ही घुल मिल गई।राधा के रंग रूप सुंदरता का राघव दीवाना था।दोनो प्यार की दुनिया मे ऐसे खोये थे कि उन्हें पता ही नही चलता था।कब दिन होता है,कब रात गुज़र जाती है।
लेकिन ईश्वर को शायद उनका प्यार मंज़ूर नही था।राधा के हाँथो की मेहंदी का रंग फीका भी नही पड़ा था। की दूसरा विश्व युद्ध छिड़ गया।जर्मनी और इंग्लैंड की लड़ाई ने धीरे धीरे सारे विश्व के देशो को इसमे शामिल कर लिया।
उन दिनों हमारा देश गुलाम था।भारत पर अंग्रेजो का शासन था।अंग्रेजो ने भारतीयों की राय लेना जरूरी नही समझा।देशवासियो की राय जाने बिना देश को युद्ध में झोंक दिया। भारतीय फ़ौज़ को युद्ध के मैदान में भेजा जाने लगा।
राघव को भी तार मिला था।उसकी छुट्टी रद्द करके तुरंत ड्यूटी पर बुलाया गया था।तार मिलने पर राघव पत्नी से बोला,"मुझे तुरंत जाना होगा।"
पति को विदा करने से पहले राधा ने सौलह श्रंगार किये थे।राजपूत वीरांगना की परंपरा का पालन करते हुए,आरती उतारकर माथे पर तिलक लगाकर ख़ुशी ख़ुशी पति को विदा किया था।
पति के चले जाने के बाद वह रात दिन ईश्वर से उसकी सलामती के लिए प्रार्थना करती थी।पति के रहने पर पता ही नही चलता था।कब दिन बिता, कब रात कट गई।लेकिन पति के चले जाने पर दिन पहाड़ से लगतेऔर रात काटे नहीं कटती थी।क्षत्राणी थी,लेकिन थी तो औरत।पति को लेकर मन आशंकाओ से घिरा रहता।
और उसकी पति की सलामती के लिए की जा रही प्रार्थना कोई काम नही आई।मन मे उठने वाली आशंका सच हो गई।राघव नही उसकी मौत का पैगाम आया था।उस संदेश ने सब कुछ बदल दिया था।
"रास्ता छोडोगी या इसी तरह बीच दरवाजे में खड़ी रहोगी?"

(शेष अगले भाग में)